मानवी भाव-भावना, सृजनशील संवेदना व सहजीवनाचे मूल्य वृद्धिंगत करणारा असा कवितासंग्रह

ही फुलपाखरे पिवळी असल्यामुळेच गौतम बुद्ध यांच्याप्रमाणे विरक्तीप्रदान भावात विलीन होतात. कवी हा पिवळ्या फुलपाखरात अंतर्मुख होऊन स्वत:चे भावविश्व त्यांच्यात शोधताना दिसतोय.

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मैं नहीं हूँ मोहन दास , मैंने कभी कहीं से  बी.ए. पास नहीं किया ।

दोस्तों ! मैं हिंदी की एक कहानी ' मोहन दास'  पर अपना दृष्टिकोण आपके सामने रखना चाहता हूँ। वैसे रचनाकार अपनी रचना में हर एक बात का संयोजन बहुत सोच-समझकर करता है और शीर्षक का कुछ ज्यादा ही; अतः आप ही कहानी पढ़कर तय कीजिएगा कि लेखक ने  कहानी के नायक का नाम 'मोहन दास' ही क्यों चुना है ? क्या इस कहानी का  कोई संबंध गाँधी जी या गाँधीवाद से भी बनता है ?

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